इस फिल्म को देखने के बाद सबसे बड़ा सवाल यह उठता है—क्या बॉलीवुड अपने क्लासिक रोमांस को अलविदा कह चुका है?
कहानी: पुरानी बोतल में बासी शराब
फिल्म की कहानी एक टिपिकल मॉडर्न रोमांस को दिखाने की कोशिश करती है, लेकिन इसमें नयापन कहीं नहीं दिखता। लड़का-लड़की मिलते हैं, उनके बीच हल्की-फुल्की नोकझोंक होती है, फिर वे एक-दूसरे की तरफ आकर्षित होते हैं, गलतफहमियाँ होती हैं और अंत में या तो मेलोड्रामा होता है या सबकुछ खुद-ब-खुद ठीक हो जाता है।
लेकिन नादानियाँ का सबसे बड़ा दोष यही है कि यह दर्शकों को कोई नया अनुभव नहीं देती। इसकी पटकथा इतनी पूर्वानुमेय (predictable) है कि पहले ही सीन से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि अगले दृश्य में क्या होगा। किरदारों में नयापन नहीं है, उनका संघर्ष सतही लगता है और उनकी मोहब्बत सिर्फ स्क्रीन पर दिखाने भर के लिए बनाई गई लगती है।
कहानी इस कदर कमजोर है कि दर्शकों को इमोशनल इन्वॉल्वमेंट का मौका ही नहीं देती। एक अच्छी रोमांटिक फिल्म वही होती है जिसमें दर्शक किरदारों की तकलीफ को महसूस कर सके, उनके साथ हंस सके, उनके लिए रो सके। लेकिन यहाँ इब्राहिम और खुशी का प्यार देखकर ऐसा लगता है मानो वे सिर्फ स्क्रिप्ट पढ़कर संवाद बोल रहे हों, दिल से कुछ महसूस नहीं कर रहे।
एक्टिंग: स्टार किड्स लगे एवरेज
इब्राहिम अली खान—न तो सैफ की चार्म, न अमृता की मासूमियत
सैफ अली खान की तरह दिखने वाले इब्राहिम इस फिल्म से अपना डेब्यू कर रहे हैं। उनके चेहरे में एक रॉयल लुक ज़रूर है, लेकिन उनकी स्क्रीन प्रेजेंस उतनी प्रभावी नहीं लगती। उनके डायलॉग डिलीवरी में एक अजीब सी सपाटियत है, जिससे इमोशन्स का एहसास नहीं होता।
इब्राहिम के किरदार में चार्म होना चाहिए था, लेकिन उनके एक्सप्रेशन्स बहुत सीमित हैं। रोमांटिक सीन में वह बेजान लगते हैं और इमोशनल सीन में उनकी परफॉर्मेंस बेहद कमजोर रहती है। फिल्म देखते हुए एक भी ऐसा सीन नहीं मिलता जो यह साबित करे कि वह एक जन्मजात कलाकार हैं।
खुशी कपूर—एक और कमजोर परफॉर्मेंस
खुशी कपूर ने आर्चीज़ से बॉलीवुड में कदम रखा था और वहाँ भी उनकी परफॉर्मेंस को औसत ही कहा गया था। इस फिल्म में भी उनकी एक्टिंग में कोई खास सुधार नहीं दिखता। उनके किरदार में गहराई नहीं है, और वह भावनाओं को व्यक्त करने में संघर्ष करती हुई नज़र आती हैं।साथ ही कुछ दिन पहले रिलीज हुई फिल्म लवयापा में भी उन्होंने अपनी एक्टिंग से कोई खास असर नहीं छोड़ा था ।
इस फिल्म में उनके और इब्राहिम के बीच की केमिस्ट्री बहुत ही नकली और मजबूरन बनाई गई लगती है। जब भी वे रोमांटिक सीन में एक-दूसरे के सामने आते हैं, ऐसा लगता है मानो दोनों सिर्फ कैमरे के लिए पोज़ दे रहे हैं, उनके बीच कोई स्वाभाविक जुड़ाव नहीं है।
डायरेक्शन और स्क्रीनप्ले: नयापन गायब
फिल्म के निर्देशक ने इसे एक मॉडर्न रोमांस बनाने की कोशिश की, लेकिन यह कहानी कहीं से भी वास्तविक नहीं लगती। संवाद इतने साधारण और पुराने लगते हैं कि दर्शकों को फिल्म से कोई कनेक्शन महसूस ही नहीं होता।
स्क्रीनप्ले में इतनी सुस्ती है कि फिल्म कहीं भी तेज़ नहीं लगती। कुछ सीन इतने खिंचे हुए लगते हैं कि दर्शक बोरियत महसूस करने लगते हैं। खासतौर पर सेकेंड हाफ में फिल्म और भी ज़्यादा बिखर जाती है।
म्यूजिक: कोई यादगार धुन नहीं
बॉलीवुड की रोमांटिक फिल्मों का एक बहुत बड़ा प्लस पॉइंट उनका संगीत होता है। चाहे मोहब्बतें हो, दिल से हो, कभी अलविदा ना कहना हो, या आशिकी 2—इन फिल्मों के गाने लोगों की ज़ुबान पर चढ़ जाते थे। लेकिन नादानियाँ के गाने इतने फीके हैं कि देखने के तुरंत बाद भी कोई गाना याद नहीं रहता।
आज के दौर में भी जब अरिजीत सिंह और प्रीतम जैसे कलाकार शानदार रोमांटिक गाने दे रहे हैं, तब नादानियाँ के गानों का इतना औसत होना बहुत बड़ा झटका देता है।
सिनेमैटोग्राफी: सुंदर लेकिन बेरंग
फिल्म की लोकेशंस बहुत खूबसूरत हैं, लेकिन एक अच्छी फिल्म बनाने के लिए सिर्फ अच्छी लोकेशंस काफी नहीं होतीं। सिनेमैटोग्राफी में कोई अनोखा विज़न नहीं है, बस सबकुछ सुंदर दिखाने की कोशिश की गई है, लेकिन उसमें भावनात्मक गहराई नहीं है।
बॉलीवुड रोमांस का भविष्य: एक बड़ी चिंता
यह फिल्म एक चेतावनी है कि बॉलीवुड में रोमांस का जॉनर किस कदर कमज़ोर होता जा रहा है। साउथ इंडियन सिनेमा में अब भी प्रेम कहानियों को बेहतरीन तरीके से दिखाया जा रहा है, चाहे वह तेलुगु फिल्म सीता रामम हो या तमिल फिल्म 96। इन फिल्मों ने दिखाया कि कैसे एक साधारण कहानी भी अगर दिल से कही जाए, तो वह दर्शकों के दिलों में गहरी छाप छोड़ सकती है।
इसके उलट, नादानियाँ जैसी फिल्में दिखाती हैं कि बॉलीवुड सिर्फ स्टार किड्स को लॉन्च करने की जल्दी में है, बिना यह सोचे कि फिल्म में कुछ नया है भी या नहीं। अगर यह ट्रेंड जारी रहा, तो वह दिन दूर नहीं जब बॉलीवुड की रोमांटिक फिल्में सिर्फ बीते दिनों की याद बनकर रह जाएँगी।
फाइनल वर्डिक्ट: नादानी में बनी "नादानियाँ"
अगर आप एक अच्छी रोमांटिक फिल्म की तलाश में हैं, तो नादानियाँ देखना वक्त की बर्बादी होगी। कमजोर कहानी, फीकी अदाकारी, औसत संगीत और बेरंग निर्देशन—इस फिल्म में कुछ भी ऐसा नहीं जो दर्शकों को थिएटर तक खींच सके।india4cinema इस फिल्म को देता है पांच में से दो स्टार।
रेटिंग: ⭐⭐ (2/5)
(फोटो साभार: Karan Johar Social Media Account)