पंचायत जैसी वेब सीरीज़ ने यह साबित कर दिया कि बिना गोली, गाली और ग्लैमर के भी एक सीधी-सच्ची कहानी लोगों के दिलों में गहरी जगह बना सकती है। उसमें गाँव की मिट्टी थी, छोटे-छोटे रिश्तों का स्वाद था, और किरदार इतने असली लगते थे कि लगता था जैसे हम उन्हीं के बीच रह रहे हों। शायद ‘दुपहिया’ भी कुछ ऐसा ही करना चाहती है। एक सादा, इमोशनल और नो-नॉनसेंस कहानी पेश करके दर्शकों को एक घरेलू सफ़र पर ले जाना। मगर अफ़सोस, इस सीरीज़ की यह कोशिश अपने मुकाम तक पहुँचने में नाकाम साबित होती है।
कहानी असरदार नहीं
गजराज राव, यशपाल शर्मा और रेणुका शहाणे जैसे मंजे हुए कलाकारों को लेकर एक कहानी बुनी गई है। गजराव राव ने बनवारी झा का किरदार निभाया है। जो सरकारी स्कूल के प्रिंसिपल है। लेकिन वो अभी तक परमानेंट नहीं हुए है। इस बात की फिक्र उनको सताती रहती है। अपनी बेटी को दहेज में देने के लिए वह एक महंगा टू व्हीलर खरीदते है। जो शादी के पहले चोरी हो जाता है।
पूरी कहानी इस टू व्हीलर के इर्द-गिर्द बुनी गई है। कहानी में गांव के लोगों के बीच होने वाली आपसी खींचतान और राजनीति को भी दिखाया गया है। लेकिन यहीं आकर ‘दुपहिया’ उस ऊँचाई तक नहीं पहुँच पाती जहाँ पंचायत पहुँच जाती है। पंचायत के हर एपिसोड में जहाँ एक कहानी, एक भाव और एक गहराई होती है , वहाँ दुपहिया लगातार एक ही भाव को दोहराती नजर आती है।
पंचायत के किरदार जहाँ हँसाते हैं, रुलाते हैं और सोचने पर मजबूर करते हैं, वहीं दुपहिया के किरदार सिर्फ भावुक करने की कोशिश करते हैं, मगर वो जुड़ाव पैदा नहीं कर पाते। कहानी का सेटअप बिहार का है। जिसे मध्यप्रदेश के ओरछा में फिल्माया गया है।
कमजोर निर्देशन
सोनम नायर का निर्देशन फ्लैट है। कोई ऐसा मोमेंट नहीं आता जो दर्शक को चौंकाए या भीतर तक छू जाए। यहाँ तक कि जिन दृश्यों को देखकर इमोशनल होना चाहिए, वे भी फीके से गुजर जाते हैं। कैमरे का काम भी साधारण है, बैकग्राउंड म्यूज़िक हल्का है लेकिन असरदार नहीं। एडिटिंग में कसावट की कमी है, जिससे कुछ एपिसोड खिंचते हुए लगते हैं। एक वक्त के बाद कहानी का दोहराव दर्शक को थकाने लगता है। आसान कहानी को बढ़िया अंदाज में पेश करने में नाकाम रही है।
कमज़ोर स्क्रीनप्ले और डायलॉग
दुपहिया को अविनाश द्विवेदी और चिराग गर्ग ने लिखा है। कुछ सीन को छोड़ दिया जाए तो सीरिज का हर एपिसोड़ नीरस सा लगता है। पंचायत में जहां हर कैरेक्टर डिटेल में लिखा गया था, तो इस सीरिज में वह नजर नहीं आता। सीरिज के डायलॉग भी बहुत कमजोर है। जिस पर लेखकों को काम करने की जरूरत थी।
एक्टिंग कैसी है ?
गजराज राव, रेणुका शहाणे, यशपाल शर्मा, स्पर्श श्रीवास्तव, शिवानी रघुवंशी, अविनाश द्वेदी और दिनेश टिक्कू ने अपना-अपना किरदार बखूबी निभाया है। रेणुका शहाणे का किरदार अधपका सा है। सीरिज में उनके हिस्से कुछ खास नहीं आया है। इस बात में कोई शक नहीं कि गजराज राव और यशपाल शर्मा इस सीरिज की जान हैं। अगर कहानी और सक्रीनप्ले कसा हुआ होता, तो शायद देखने में ज्यादा मजा आता।
पंचायत से कोसो दूर
पंचायत में कहानी जितनी धीरे चलती है, उतनी ही गहराई के साथ वो दर्शक के दिल में उतरती है। वहाँ किरदार बोलने से ज़्यादा अपनी खामोशी से कुछ कह जाते हैं। दुपहिया में खामोशी है, लेकिन वो मौन के बजाय खालीपन की तरह लगती है। हर एपिसोड में स्कूटर की बात लौट-लौट कर आती है, मगर कहानी में कोई नया मोड़, कोई चौंकाने वाला पल या कोई ऐसा क्षण नहीं आता जो याद रह जाए।
फिर भी, दुपहिया की सबसे बड़ी अच्छाई यह है कि वह अपने रास्ते पर ईमानदारी से चलती है। इसमें कोई बनावट नहीं है, कोई दिखावा नहीं है। अगर आप तेज़-तर्रार कंटेंट से दूर, कुछ शांत और पारिवारिक देखना चाहते हैं, तो इसे एक बार देखा जा सकता है। लेकिन अगर आपने ‘पंचायत’ जैसी वेब सीरीज़ देखी है और उसी लेवल की संवेदना, गहराई और कहानी की उम्मीद लेकर ‘दुपहिया’ देखना शुरू करते हैं — तो शायद आप निराश हो सकते हैं।
संक्षेप में कहा जाए तो दुपहिया एक अच्छी मंशा से बनी, लेकिन अधूरी प्रस्तुति है। यह एक सादा सफर है, जो दिल तक पहुँचने की चाह रखता है, मगर बीच रास्ते में ही रुक जाता है। पंचायत जैसे कंटेंट की ऊँचाई को छूने के लिए सिर्फ सादगी काफी नहीं, वहाँ तक पहुँचने के लिए कहानी में गहराई, किरदारों में परतें और निर्देशन में संवेदना की धार होनी ज़रूरी है — जो दुपहिया में कमज़ोर पड़ जाती है
5 में से 2.5 स्टार
India4Cinema की तरफ से दुपहिया को पांच में से 2.5 स्टार मिलते है। अगर आप फैमिली के बैठकर कोई सीरिज देखना चाहते है, तो दुपहिया देख सकते हैं। लेकिन पंचायत जैसी कोई उम्मीद अपने मन में रखकर कतई न देखें। आप निराश होंगे।