बॉलीवुड के दिग्गज कलाकार अनुपम खेर का नाम उन गिने-चुने अभिनेताओं में शुमार किया जाता है, जिन्होंने अपनी मेहनत और लगन के दम पर इंडस्ट्री में ख़ास मुकाम हासिल किया। उनकी ज़िंदगी की कहानी सिर्फ़ एक एक्टर की नहीं, बल्कि एक जज़्बे और जद्दोजहद की दास्तान है। अभिनय की दुनिया में कदम रखने से लेकर आज तक, अनुपम खेर ने हर दौर में अपने हुनर से लोगों का दिल जीता है।
शुरुआती ज़िंदगी
अनुपम खेर का जन्म 7 मार्च 1955 को शिमला, हिमाचल प्रदेश में एक मध्यमवर्गीय कश्मीरी पंडित परिवार में हुआ। उनके पिता पुष्करनाथ खेर एक सरकारी कर्मचारी थे और परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत मज़बूत नहीं थी। बचपन से ही एक्टिंग के प्रति उनका झुकाव था, लेकिन अभिनय की दुनिया तक पहुंचना आसान नहीं था।
उनका शुरुआती दौर संघर्ष से भरा रहा। पढ़ाई के दौरान उन्हें कई बार आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा। खाने के लिए पैसे नहीं होते थे, और कभी-कभी उन्हें दोस्तों के साथ रहकर गुज़ारा करना पड़ता था। लेकिन उनका हौसला कभी डगमगाया नहीं। उन्होंने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (NSD) में दाखिला लिया और वहीं से अपने एक्टिंग के सपने को उड़ान देने की ठानी।
बॉलीवुड में पहला कदम
मुंबई आने के बाद भी संघर्ष जारी रहा। शुरुआती दिनों में उन्हें छोटे-मोटे रोल और थिएटर के सहारे अपने पैर जमाने पड़े। लेकिन 1984 में आई फिल्म "सारांश" ने उनकी तक़दीर बदल दी। इस फिल्म में उन्होंने एक 60 वर्षीय बुजुर्ग व्यक्ति 'बीवी प्रधान' का किरदार निभाया, जो अपने इकलौते बेटे को खो चुका है। महज़ 28 साल की उम्र में बूढ़े का किरदार निभाने की चुनौती अनुपम खेर ने न सिर्फ़ स्वीकार की, बल्कि इसे इस कदर निभाया कि वे रातों-रात सुर्खियों में आ गए।
"सारांश" के लिए उन्हें फिल्मफेयर अवॉर्ड से नवाज़ा गया और यह फिल्म उनके करियर की सबसे बड़ी टर्निंग पॉइंट बन गई। इसके बाद उन्हें कभी पीछे मुड़कर देखने की ज़रूरत नहीं पड़ी।
आमिर ख़ान और महेश भट्ट के साथ रिश्ता
अनुपम खेर और आमिर ख़ान की दोस्ती फिल्म इंडस्ट्री में एक मिसाल मानी जाती है। जब आमिर अपने करियर की शुरुआत कर रहे थे, तब अनुपम ने उन्हें काफ़ी सपोर्ट किया। वहीं, मशहूर निर्देशक महेश भट्ट के साथ उनकी जुगलबंदी भी शानदार रही। "सारांश" के बाद उन्होंने महेश भट्ट के साथ कई हिट फिल्में दीं, जिनमें "डैडी", "जख्म" और "दिल है कि मानता नहीं" जैसी बेहतरीन फिल्में शामिल हैं।
कॉमेडी से लेकर विलेन तक का सफर
अनुपम खेर सिर्फ़ संजीदा किरदारों तक सीमित नहीं रहे, बल्कि उन्होंने अपनी एक्टिंग रेंज को हर तरह की भूमिकाओं में आज़माया।
- विलेन के रूप में: "राम लखन" (1989), "खुदा गवाह" (1992), और "डर" (1993) जैसी फिल्मों में उनका निगेटिव रोल काफ़ी दमदार रहा।
- कॉमेडी में जलवा: "चालबाज़", "लम्हे", "दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे", "कुछ कुछ होता है" और "हसीना मान जाएगी" जैसी फिल्मों में उन्होंने अपनी कॉमिक टाइमिंग से दर्शकों को खूब हंसाया।
- संजीदा अभिनय: "सारांश", "ए वेडनेसडे", "स्पेशल 26" और "एम.एस. धोनी: द अनटोल्ड स्टोरी" जैसी फिल्मों में उन्होंने अपनी एक्टिंग स्किल्स का लोहा मनवाया।
हॉलीवुड में धमाकेदार एंट्री
अनुपम खेर का टैलेंट सिर्फ़ बॉलीवुड तक ही सीमित नहीं रहा। उन्होंने हॉलीवुड में भी अपनी मौजूदगी दर्ज कराई।
- 2002 में आई फिल्म "बेंड इट लाइक बेकहम" में उन्होंने एक अहम किरदार निभाया।
- 2012 में आई "सिल्वर लाइनिंग्स प्लेबुक" में उन्होंने ब्रैडली कूपर और जेनिफर लॉरेंस के साथ काम किया।
- वे अमेरिकी टीवी शो "सेंस 8" में भी नज़र आ चुके हैं।
अभिनय के अलावा समाज सेवा और शिक्षा में योगदान
अनुपम खेर सिर्फ़ एक अभिनेता ही नहीं, बल्कि एक प्रेरक वक्ता (मोटिवेशनल स्पीकर) और समाजसेवी भी हैं। उन्होंने "अनुपम खेर एक्टिंग स्कूल" की स्थापना की, जहां नए कलाकारों को प्रशिक्षण दिया जाता है। इसके अलावा वे कई बार सामाजिक मुद्दों पर खुलकर अपनी राय रखते हैं।
संघर्ष से कामयाबी तक
अनुपम खेर की ज़िंदगी यह सिखाती है कि अगर इरादे मज़बूत हों और मेहनत की ताक़त पर भरोसा हो, तो कोई भी मंज़िल मुश्किल नहीं होती। वे सिर्फ़ एक बेहतरीन कलाकार ही नहीं, बल्कि नए कलाकारों के लिए एक प्रेरणा हैं।
आज भी वे सिनेमा और समाज में सक्रिय हैं और अपने अभिनय से नई पीढ़ी को यह सिखा रहे हैं कि अगर जज़्बा हो तो हालात चाहे जैसे भी हों, इंसान अपनी तक़दीर खुद लिख सकता है।