मशहूर फिल्ममेकर श्यान बेनेगल का सोमवार शाम को मुंबई के एक अस्पताल में निधन हो गया। नौ दिन पहले उन्होंने अपना 90वां जन्मदिन मनाया था। बेनेगल ने "अंकुर", "निशांत" और "भूमिका" जैसी फिल्मों के साथ सिनेमा के नियमों को नए सिरे से लिखने की कोशिश की। उन्होंने मुख्यधारा की फिल्मों के लिए एक अलग रास्ता तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। बेनेगल को समानांतर सिनेमा का जनक माना जाता है। उनकी गिनती भारत के महानतम फिल्म निर्देशकों में होती है। बेनेगल को पहचान साल 1974 में रिलीज हुई फिल्म अंकुर से मिली। श्याम उन चुनिंदा फिल्म निर्देशकों में एक हैं, जिन्होंने फिल्मों, डॉक्यूमेंट्री, बायोपिक्स, खासकर- नॉन-फिक्शन और फिक्शन दोनों में काम किया।
बेनेगल का फिल्म करियर
उनकी पहली "अंकुर", जो भारत के एक छोटे से गांव में जाति संघर्ष और सामंतवाद पर आधारित है। जिसे खूब पसंद किया गया। अपने फिल्मी करियर में बेनेगल ने 25 से अधिक फिल्मों का निर्देशन किया।
जिसमें "मंडी", "मंथन", "जुनून", "कलयुग" और "जुबैदा" शामिल हैं। बेनेगल ने जवाहरलाल नेहरू की पुस्तक "डिस्कवरी ऑफ इंडिया" पर पर आधारित टीवी शो "भारत एक खोज" और संविधान के निर्माण पर धारावाहिक "संविधान" का भी निर्देशन किया।
बेनेगल ने कई महान अभिनेताओं को स्टार बनाया। शबाना आज़मी, स्मिता पाटिल, नसीरुद्दीन शाह और गिरीश कर्नाड उन एक्टर्स में शामिल हैं, जिन्हें बेनेगल फिल्मों ने पहचान दिलाई।
फिल्मों के जरिए बेनेगल ने देश के हर तबके की आवाज उठाई। अगर फिल्म "कलयुग" महाभारत की आधुनिक कहानी है, तो फिल्म "भूमिका" एक महिला फिल्म स्टार और उसके अक्सर शोषणकारी रिश्तों की तीखी कहानी है, "मंडी" एक वेश्यालय और उसके रहने वालों की कहानी है जो अपने जीवन में पुरुषों को चतुराई से नियंत्रित करती हैं और "वेलकम टू सज्जनपुर" एक महत्वाकांक्षी उपन्यासकार से पत्र लेखक बने व्यक्ति की कहानी है।
दोस्तों और अपने को-वर्कर द्वारा प्यार से श्याम बाबू कहे जाने वाले बेनेगल 1970 और 1980 के दशक में साईं परांजपे, गोविंद निहलानी, मणि कौल, सईद अख्तर मिर्जा और कुमार शाहनी के साथ आर्ट सिनेमा के स्तंभ रहे।
बता दें कि दिवंगत नाटककार विजय तेंदुलकर ने गुजरात के आनंद में दुग्ध सहकारी आंदोलन पर आधारित श्याम बेनेगल निर्देशित फिल्म "मंथन" की पटकथा लिखी थी, जिसे पांच लाख किसानों से ₹2 की फंडिंग से बनाया गया था। बेनेगल की इस फिल्म की दुनिया भर में खूब चर्चा हुई।
चमक-दमक से दूर रहते थे
बेनेगल अपनी उपलब्धियों के बारे में कम ही बात करते थे। पहले आंध्रप्रदेश अब तेलंगाना में तिरुमालागिरी में जन्मे बेनेगल सिनेमा के इर्द-गिर्द बड़े हुए। उनके पिता एक फोटोग्राफर थे, जो शॉर्ट फिल्में भी बनाते थे। वे फिल्म लीजेंड गुरु दत्त के दूसरे चचेरे भाई भी थे। बेनेगल ने हैदराबाद के उस्मानिया विश्वविद्यालय से इकोनॉमिक्स में पोस्ट ग्रेजुएशन किया। वह टीचिंग का पेशा अपनाना चाहते थे। लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। जिसके चलते युवा बेनेगल जल्द ही काम की तलाश में मुंबई चले गए और शुरू में गुरु दत्त को असिस्ट करने के बारे में सोचा, लेकिन उन्होंने यह काम छोड़ दिया क्योंकि उनके अपने विचार थे।
इसके बाद, उन्होंने एक विज्ञापन एजेंसी में कॉपीराइटर के रूप में नौकरी की। कुछ समय बाद, उनकी एजेंसी ने उन्हें फिल्मों के प्रति उनके झुकाव को देखते हुए फिल्म विभाग में ट्रांसफर कर दिया, जहाँ उन्होंने फुलटाइम फिल्म निर्माता बनने तक विज्ञापन फिल्में बनाना शुरू की। इसके बाद उन्होंने "अंकुर" के साथ अपनी फीचर फिल्म की शुरुआत करने से पहले भारतीय फिल्म प्रभाग के लिए डॉक्यूमेंट्री बनाई।
कई पुरस्कारों से नवाजे गए
बेनेगल एक बहुत सम्मानित फिल्म निर्माता थे। बेनेगल ने अपने करियर में कई राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त किए। उन्हें 1976 में पद्मश्री और 1991 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। 2005 में उन्हें सिनेमा के क्षेत्र में भारत के सर्वोच्च पुरस्कार दादा साहब फाल्के पुरस्कार से नवाजा गया। बेनेगल 2006 से 2012 तक राज्यसभा सांसद भी रहे। 90 साल की उम्र के बावजूद और किडनी की बीमारी से पीड़ित जिंदादिल बेनेगल ने फिल्म जगत को अलविदा कहने से मना कर दिया था।
पिछले हफ्ते अपने 90वें जन्मदिन के मौके पर बेनेगल ने न्यूज एजेंसी पीटीआई से कहा, "मैं दो-तीन प्रोजेक्ट पर काम कर रहा हूं, वह सभी एक-दूसरे से अलग हैं। यह कहना मुश्किल है कि मैं कौन-सा प्रोजेक्ट बनाऊंगा। वे सभी बड़े पर्दे के लिए हैं।" श्याम बेनेगल एक संस्था थे। जिनकी छत्रछाया में भारतीय सिनेमा खूब फलां-फूला।